Wednesday, May 2, 2012

हम दुकान सजाते रहे और बाज़ार उठ गया,

हम दुकान सजाते रहे और बाज़ार उठ गया,
कुछ सामान दिखाते रहे और खरीदार उठ गया ;

हाथ पकड़ के हमने उसे बिठाया बार बार,
हाथ झटक के वो मेरा, बार बार उठ गया ;

कोतवालों ने किया घर नीलाम कुछ ऐसे ,
रूठ कर हिस्से से अपने, हकदार उठ गया ;

डूबकर उसकी ग़ज़ल में खोएं इस कदर ,
जागने से पहले ही वो फनकार उठ गया ;

2 comments:

Dev said...

डूबकर उसकी ग़ज़ल में खोएं इस कदर ,
जागने से पहले ही वो फनकार उठ गया ;
बहुत खूब

chakresh singh said...

thank you sir

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...