हमने ठुकराई है पा कर दुनिया, आप कहते हैं हम दीवाने हैं
खैर फिर भी गिला नहीं हमको, ये तो लोगों के ढब पुराने हैं
किस गली जा रहे हैं कैसे कहें, क्यूँ यहाँ एक पल गंवारा नहीं
कौन समझा है जो के समझायें, कितने वादे हमें निभाने हैं
बीतते वक़्त से न रखें रिश्ता, कल की सुबह को दुल्हन कह दें
चाँदनी खुद से ही शर्मा जाए, हम तो उस दर्जे के परवाने हैं
आज भी कमरों चंद खिड़कियाँ, कुण्डी तलास कराती हैं
अब निकलते हैं तेरी महफ़िल से, हमें कुछ दरवाज़े खट-खटाने हैं
यूँ तो उनका नहीं है कोई निशाँ, और हमको नहीं है उनकी ख़बर
फिर भी 'चक्रेश' रोज़ कहता है, तुमको कुछ रिश्ते नए बनाने हैं
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
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