Thursday, February 16, 2012

जत्था

जब लूट मची थी बागों में

अंधड़ और आंधी के बाद

पेड़ों के सारे मीठे फल जब

बिछे हुए थे मीलों तक...

एक जत्था आया था बच्चों का

हँसता गाता चिल्लाता

और पलक झपकते ही आँखों से

लूट गया मीलों का विस्तार...

धूल उठी और जाते जत्थे की

बस गूँज रह गयी कानों में...
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लूट का हिस्सा मैं नहीं लेता के मैं कोई लूटेरा थोड़ी ही हूँ,
मुझको जाने किसने लूटा और ये कह गया के: "क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाओगे ?"

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...