Sunday, March 6, 2011

कोई काव्य अधूरा रह जाए, ये बात मुझे मंजूर नहीं

कोई काव्य अधूरा रह जाए, ये बात मुझे मंजूर नहीं
इस शोर में मूक मैं हो जाऊं, ऐसा भी तो मजबूर नहीं

कितनी ही बूँदें देखो तो, रेतों में फँसी हैं साहिल की
सब सत्य से अपने वंचित हैं, सागर जबके है दूर नहीं

मेरे रोम रोम झंकृत है, इक संगीत विधाता की रचना
ये कलम आत्मा की वीणा, कोई साज़ कोई संतूर नहीं

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...