Sunday, January 2, 2011

सुहाने पल की ढेरों यादें

सुना था जिन दीवारों से चिपककर चलती हैं कुछ पुरानी यादें
और मिलता है जहाँ से मिर्जा असद उल्लाह खाँ 'ग़ालिब' का पता ..
मैं आज उन्ही चूड़ी वालन की गलियों से होकर आया हूँ
लाल किला जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली के दिल से चुरा लाया हूँ
पुरे जीवन काल के लिए एक सुहाने पल की ढेरों यादें ....

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...