Thursday, December 30, 2010

यूँही मुझको चुप रहने की आदत पड़ी पुरानी है

यूँही मुझको चुप रहने की आदत पड़ी पुरानी है
बात बात पे हंस देता हूँ आँखों में तो पानी है

चुन चुन कर के लाया तिनके पिरो पिरो बुनता रिश्ते
अब के मौसम ऐसा लागे दुनिया मेरी लुट जानी है

माँ का आँचल ऐसा छूटा रूठ गयीं मुझसे नींदें
सारा दिन फिर दुनिया-दारी रोज़ी रोटी कमानी है

रुक रुक करके पीछे देखूं आगे की मैं क्या जाऊं
नए साल में कुछ तो होगा, आस वही पुरानी है

शब्दों की इस माला में मेरी कुछ भावों की डोरी है
दर लगता है साथ में मेरे शायद ये जल जानी है

मैं न जाऊं कब डूबेगी मेरे ख्वाबों की कश्ती
गाल हाथ धरे देख रहा हूँ रात बड़ी तूफानी है








Ckh









आप इसे निदा फाजली जी की लिखी " मुह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन .." की धुन गा के देख सकते हैं...बहर में पूरी तरेह से तो नहीं है ...

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति...
नव वर्ष आप सब के लिए मंगलमय हो.

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...